मेरे बस में कुछ नहीं
सब कुछ तेरे हाथ
अमृत सम सुख दे रही
बस इतनी सी बात
गिरिधारी के नाम पर
छोड़ दिया घर बार
मगर नहीं चलता कभी
अहंकार संग प्यार
हे गोकुलवासी कहो
काहे रहे खिझाय
सब खोया पाया लगे
सब पाऊँ सब जाय
हे अच्युत तेरी शरण
और न दूजा काम
इतनी किरपा हो प्रभु
भजूँ श्याम अविराम
आते जाते हैं सखा
सब छाया के खेल
मैं जिसकी छाया यहाँ
कब हो उससे मेल
अशोक व्यास
१ जून १९९७ को लिखी
१० मार्च २०११ को लोकार्पित
No comments:
Post a Comment