Thursday, March 10, 2011

सब कुछ तेरे हाथ


मेरे बस में कुछ नहीं
सब कुछ तेरे हाथ
अमृत सम सुख दे रही
बस इतनी सी बात

गिरिधारी के नाम पर
छोड़ दिया घर बार
मगर नहीं चलता कभी
अहंकार संग प्यार

हे गोकुलवासी कहो
काहे रहे खिझाय 
सब खोया पाया लगे
सब पाऊँ सब जाय

हे अच्युत तेरी शरण
और न दूजा काम
इतनी किरपा हो प्रभु
भजूँ श्याम अविराम

आते जाते हैं सखा
सब छाया के खेल
मैं जिसकी छाया यहाँ
कब हो उससे मेल


अशोक व्यास
१ जून १९९७ को लिखी
१० मार्च २०११ को लोकार्पित                      

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