बीच तुम्हारे और मेरे
है सारा संसार
देखूं तुमको किस तरह
सबको करके पार
तुम स्वामी हो अन्तर्यामी
करते अद्भुत खेल
कृपा तुम्हारे हो तभी
होता खुद से मेल
चंचल चित की चाट से
भरा हुआ बाज़ार
कान्हा तेरी कृपा बिन
मिल न पाए सार
अशोक व्यास
२ जून १९९७ को लिखी
१४ मार्च २०११ को लोकार्पित
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