Sunday, March 27, 2011

जय जय जय नंदलाल


जय जय जय नंदलाल
जय जय जय पृथ्वीपाल

आनंदित रूप धरयो
पहिरी है ब्रज की माल

गाओ गुण श्याम सखी
दे दे कर प्रेम ताल

यशोदा का नंदनंदन
कान्हा बलिहारी जाऊं

मुख माखन लिपटाये
देखो कान्हा आये

पग धर कर रेत करे, स्वर्ण सरीखी कान्हा
अपनी छवि भक्तन के नाम कर दीनी  कान्हा

जय जय मंगल जय
जय जय कल्याणकारी
बलिहारी , त्रिपुरारी, वारि, मैं तो वारि

अशोक व्यास
२१ फरवरी १९९७ को लिखी
२७ मार्च २०११ को लोकार्पित   

         

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