जय जय जय नंदलाल
जय जय जय पृथ्वीपाल
आनंदित रूप धरयो
पहिरी है ब्रज की माल
गाओ गुण श्याम सखी
दे दे कर प्रेम ताल
यशोदा का नंदनंदन
कान्हा बलिहारी जाऊं
मुख माखन लिपटाये
देखो कान्हा आये
पग धर कर रेत करे, स्वर्ण सरीखी कान्हा
अपनी छवि भक्तन के नाम कर दीनी कान्हा
जय जय मंगल जय
जय जय कल्याणकारी
बलिहारी , त्रिपुरारी, वारि, मैं तो वारि
अशोक व्यास
२१ फरवरी १९९७ को लिखी
२७ मार्च २०११ को लोकार्पित
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