Sunday, March 6, 2011

कान्हा की मुस्कान मिटाये है हर उलझन


श्याम तिहारी और हो
मन का नित्य प्रवाह
और कामना से परे 
रहे तुम्हारी चाह

हे मधुसूदन, कृष्ण मुरारी
सदा सुहाए छवि तुम्हारी

सुमिरन रस देता है आस
हर एक ठौर तुम्हारा वास

 कान्हा की मुस्कान मिटाये है हर उलझन
            भवसागर के पार कराये बांकी चितवन        

अशोक व्यास
३० जून १९९७ को लिखी
६ मार्च २०११ को परिमार्जन के साथ लोकार्पित  

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