श्याम तिहारी और हो
मन का नित्य प्रवाह
और कामना से परे
रहे तुम्हारी चाह
हे मधुसूदन, कृष्ण मुरारी
सदा सुहाए छवि तुम्हारी
सुमिरन रस देता है आस
हर एक ठौर तुम्हारा वास
कान्हा की मुस्कान मिटाये है हर उलझन
भवसागर के पार कराये बांकी चितवन
अशोक व्यास
३० जून १९९७ को लिखी
६ मार्च २०११ को परिमार्जन के साथ लोकार्पित
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