बार बार गूंथूं माला
बार बार ढूंढूं नंदलाला
दिख दिख कर छुपता जाए
वो मधुर मुरलिया वाला
श्याम सहारे बैठ लूं
भजूँ उसे दिन रात
वह अद्भुत मनमोहना
अनुपम उसकी बात
सुन्दरतम श्रृंगार है
अति उत्तम है प्यार
पावन ब्रजभूमि हुयी
कान्हा किये विहार
अशोक व्यास
१४ जून १९९७ को लिखी
१ मार्च २०११ को लोकार्पित
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