Friday, March 4, 2011

श्याम सब ही को नचावे


श्याम सखा संग
खेलन जाए
गोपी मन ही मन 
इतराए

कर श्रृंगार
देख दर्पण को
श्याम दरस सुख पावे
नाचे गोप
गोपियाँ नाचे
श्याम सब ही को नचावे

अनुपम
मंगल
उज्जवल कान्हा
प्रेम प्यास को बढ़ावे

मन 
निर्मल हो
धड़कन में सखी
ऋतु वसंत की गावे

देखी छटा जो
नंदनंदन की
शेष न कछु रह जावे

जय श्री कृष्ण
जय श्री कृष्ण
सांस मधुर धुन आवे

अशोक व्यास
२६ जून १९९७ को लिखी
                    

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