श्याम सखा संग
खेलन जाए
गोपी मन ही मन
इतराए
कर श्रृंगार
देख दर्पण को
श्याम दरस सुख पावे
नाचे गोप
गोपियाँ नाचे
श्याम सब ही को नचावे
अनुपम
मंगल
उज्जवल कान्हा
प्रेम प्यास को बढ़ावे
मन
निर्मल हो
धड़कन में सखी
ऋतु वसंत की गावे
देखी छटा जो
नंदनंदन की
शेष न कछु रह जावे
जय श्री कृष्ण
जय श्री कृष्ण
सांस मधुर धुन आवे
अशोक व्यास
२६ जून १९९७ को लिखी
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