Thursday, March 24, 2011

मांगें सच की


मेरा होना क्या है
ढूंढता हूँ
यहाँ-वहां
नींद से बोझिल आँखे लिए
निराशा की पतझड़ में
लगता है
नहीं मिलेगा कभी
अपने होने का सबब
ठेलता हूँ
एक झूठ से दूसरे झूठ तक
खुदको
क्योंकि सच क्या है
जानता नहीं
और जान लेता हूँ कभी
तो मान नहीं पाता
मांगें सच की


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ मार्च १९९७ को लिखी रचना
२४ मार्च २०११ को लोकार्पित             

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