पूजा ध्यान हो रहे खाना पूरी
बढ़ती जाती ठाकुर जी से दूरी
कर्म पाठ में प्यार खो रहा
ऐसा कहे प्रभु हो रहा
कैसे वो अनुभव दोहराऊँ
जिनमें सिर्फ आपको पाऊँ
हे अनंत, मत करो बावरा
राह दिखाओ
प्रीत तुम्हारी लक्ष्य सांस का
चाह जगाओ
अशोक व्यास
१७ मई 1997 को लिखी
२८ मार्च २०११ को लोकार्पित
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