Monday, March 28, 2011

कैसे वो अनुभव दोहराऊँ



पूजा  ध्यान हो रहे खाना पूरी
बढ़ती जाती ठाकुर जी  से दूरी
 
कर्म पाठ में प्यार खो रहा
ऐसा  कहे प्रभु हो रहा
 
कैसे वो अनुभव दोहराऊँ
जिनमें सिर्फ आपको पाऊँ
 
हे अनंत, मत करो बावरा
राह दिखाओ
प्रीत तुम्हारी लक्ष्य सांस का
चाह जगाओ 
 
अशोक व्यास
१७ मई 1997 को लिखी
२८ मार्च २०११ को लोकार्पित      
     

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