प्रेम पथ पर श्याम के संग चल निरंतर
साधना की सूक्ष्म आभा में निखर कर
बिसर कर संताप और सब मोह-बंधन
ध्यान में बस बंशी वाला नन्द-नंदन
मांग ले रे साथ उसका अब मचल कर
देखना मत, भ्रम के भंवरों को पलट कर
कामना की पालकी से अब उतर ले
दिव्य दर्पण देख कर, तू अब संवर ले
पूर्णता का बोध अंतस में मुखर कर
प्रेम पथ पर श्याम के संग चल निरंतर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
रविवार, ३ अप्रैल २०११
2 comments:
वाह क्या शब्दों की माला पिरोई है
सुंदर
धन्यवाद आलोकजी
आपतो मोहन के नाम को अपनाये हुए हैं
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