सखियाँ मिल कर यूँ बतियाएं
आज न पनघट पर हम जाएँ
प्यास बुझायें लीलारस से
नंदनंदन के गीत बनाएं
२
श्याम सुने और श्याम सुनाएँ
वृन्दावन में मोक्ष उगायें
प्रेम करे ऐसा उजियारा
सूर्यकिरण फीकी पड़ जाएँ
३
रटे-रटाये पद ना गायें
नूतनता का मोद मनाएं
माखन जैसी मीठी बतियाँ
गोविन्द गोविन्द कह कर पायें
४
अहा, आज सब श्याम खिजायें
सब कान्हा का स्वांग रचाएं
पर जब बंशी अधर धरायें
स्वर न पायें, श्याम बुलाएं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, ६ अप्रैल २०११
2 comments:
वाह वाह वाह दोस्त सुंदर और सात्विक कविता
आनंद रस छलकाए कान्हा
कैसे मिलने आये कान्हा
कस के थाम लिया है अबके
अब जाने न पाए कान्हा
जय श्री कृष्ण
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