चल वसंत आया सखी
करें कृष्ण संग रास
नृत्य बहे हर सांस में
जब कृष्ण पिया हो पास
चल कान्हा की बंशी चुराएँ
नटखट को हम आज खिझायें
वो कदम्ब के तले जो आये
पेड़ चढ़े हम जीभ दिखाएँ
पर बंशी कान्हा बिन क्या है
उसके बिना रात दिन क्या हैं
हम तो उसको लाड लड़ाएं
वो रूठे तो उसे मनाएं
नन्द नंदन के मन जो भाए
हम तो वही चाल अपनाएँ
जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जन ९ और जन १०, ०५ को लिखी पंक्तियाँ
जन ८, १० को लोकार्पित)
करें कृष्ण संग रास
नृत्य बहे हर सांस में
जब कृष्ण पिया हो पास
चल कान्हा की बंशी चुराएँ
नटखट को हम आज खिझायें
वो कदम्ब के तले जो आये
पेड़ चढ़े हम जीभ दिखाएँ
पर बंशी कान्हा बिन क्या है
उसके बिना रात दिन क्या हैं
हम तो उसको लाड लड़ाएं
वो रूठे तो उसे मनाएं
नन्द नंदन के मन जो भाए
हम तो वही चाल अपनाएँ
जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जन ९ और जन १०, ०५ को लिखी पंक्तियाँ
जन ८, १० को लोकार्पित)
1 comment:
"सखी री, मुरली लीजै चोरि!" - याद आ गया!
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ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"
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