Friday, January 8, 2010

चल कान्हा की बंशी चुराएँ


चल वसंत आया सखी
करें कृष्ण संग रास
नृत्य बहे हर सांस में
जब कृष्ण पिया हो पास


चल कान्हा की बंशी चुराएँ
नटखट को हम आज खिझायें
वो कदम्ब के तले जो आये
पेड़ चढ़े हम जीभ दिखाएँ

पर बंशी कान्हा बिन क्या है
उसके बिना रात दिन क्या हैं

हम तो उसको लाड लड़ाएं
वो रूठे तो उसे मनाएं
नन्द नंदन के मन जो भाए
हम तो वही चाल अपनाएँ


जय श्री कृष्ण


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जन ९ और जन १०, ०५ को लिखी पंक्तियाँ
जन ८, १० को लोकार्पित)