Wednesday, January 20, 2010

जहाँ जहाँ देखूं वो है


अहंकार बेकार बना कर चला गया
जीने का आधार बना कर चला गया

अपनी दौलत दे तो दी मुझको सारी
पर अब चौकीदार बना कर चला गया

जितने भी थे, द्वेष और तृष्णा सारे
छूकर सबको, प्यार बना कर चला गया

मैं कहता था कभी छोड़कर ना जाना
पर वो अपना सार जगा कर चला गया

जब जब देखूं, जहाँ जहाँ देखूं वो है
तन्मयता का तार सजा कर चला गया

आलोकित है कण कण में जैसे वो ही
सतत सत्य झंकार सजा कर चला गया

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ फरवरी १९०६ को लिखी
२० जनवरी २०१० को लोकार्पित

No comments: