अहंकार बेकार बना कर चला गया
जीने का आधार बना कर चला गया
अपनी दौलत दे तो दी मुझको सारी
पर अब चौकीदार बना कर चला गया
जितने भी थे, द्वेष और तृष्णा सारे
छूकर सबको, प्यार बना कर चला गया
मैं कहता था कभी छोड़कर ना जाना
पर वो अपना सार जगा कर चला गया
जब जब देखूं, जहाँ जहाँ देखूं वो है
तन्मयता का तार सजा कर चला गया
आलोकित है कण कण में जैसे वो ही
सतत सत्य झंकार सजा कर चला गया
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ फरवरी १९०६ को लिखी
२० जनवरी २०१० को लोकार्पित
जीने का आधार बना कर चला गया
अपनी दौलत दे तो दी मुझको सारी
पर अब चौकीदार बना कर चला गया
जितने भी थे, द्वेष और तृष्णा सारे
छूकर सबको, प्यार बना कर चला गया
मैं कहता था कभी छोड़कर ना जाना
पर वो अपना सार जगा कर चला गया
जब जब देखूं, जहाँ जहाँ देखूं वो है
तन्मयता का तार सजा कर चला गया
आलोकित है कण कण में जैसे वो ही
सतत सत्य झंकार सजा कर चला गया
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ फरवरी १९०६ को लिखी
२० जनवरी २०१० को लोकार्पित
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