'अदभुत' यह शब्द लिख कर देखा कान्हा की ओर
कान्हा की मुस्कान ने कहा, अदभुत है भोर
उजियारे की चादर में भी है मेरा मुखरित रूप
छाया में भी छुपा हुआ मैं, मुझको गाती धूप
कान्हा, धूप में तुम्हारा स्वर कैसे दे सुनाई
'वहां से सुनो, जहाँ कुछ नहीं देता सुनाई'
कान्हा पहेलियाँ मत बुधो, सीधे सीधे बताओ
कैसे मिल सकते तुमसे, बस इतना बताओ
मुझसे मिलना तो आसान है, कहा कान्हा ने
बस तुम मुझसे मिल जाने का मन बनाओ
मन को मनाना आसान कहाँ है
सारे जग का घमासान यहाँ है
जब मेरी मुस्कान तुम्हारे मन को छू जायेगी
मधुर शांति स्वतः स्फूर्त हो पायेगी
पर इस छुवन के लिए समर्पण तो जगाओ
मुझसे मिलना आसान है, बस प्रेम बढाओ
छोड़ कर वस्त्र संशय के, सत्य की धूप में नहाओ
सतत विस्तृत होते आभा मंडल में रम जाओ
अशोक व्यास
ठाकुरजी के लिए २१ दिसंबर २००५ को लिखी पंक्तियाँ
३० जनवरी २०१० को लोकार्पित
कान्हा की मुस्कान ने कहा, अदभुत है भोर
उजियारे की चादर में भी है मेरा मुखरित रूप
छाया में भी छुपा हुआ मैं, मुझको गाती धूप
कान्हा, धूप में तुम्हारा स्वर कैसे दे सुनाई
'वहां से सुनो, जहाँ कुछ नहीं देता सुनाई'
कान्हा पहेलियाँ मत बुधो, सीधे सीधे बताओ
कैसे मिल सकते तुमसे, बस इतना बताओ
मुझसे मिलना तो आसान है, कहा कान्हा ने
बस तुम मुझसे मिल जाने का मन बनाओ
मन को मनाना आसान कहाँ है
सारे जग का घमासान यहाँ है
जब मेरी मुस्कान तुम्हारे मन को छू जायेगी
मधुर शांति स्वतः स्फूर्त हो पायेगी
पर इस छुवन के लिए समर्पण तो जगाओ
मुझसे मिलना आसान है, बस प्रेम बढाओ
छोड़ कर वस्त्र संशय के, सत्य की धूप में नहाओ
सतत विस्तृत होते आभा मंडल में रम जाओ
अशोक व्यास
ठाकुरजी के लिए २१ दिसंबर २००५ को लिखी पंक्तियाँ
३० जनवरी २०१० को लोकार्पित
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