Thursday, January 14, 2010

मन केवट है

सुमिरन है पतवार,नाव श्रद्धा, मन केवट है
नदी उसी की है, जिसकी छवि लिए हुए तट है
मुरली धुन में प्रेम बहा कर बुला रहा है

भगा भगा कर छुप जाए, मोहन तो नटखट है


अशोक व्यास, न्यूयार्क



नवम्बर २२, २००५ को लिखी पंक्तियाँ
जन १३, २०१० को लोकार्पित 

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