चल आज बसंती पवन चली
साँसों में श्याम समाया है
सखी प्रेम मगन कलियाँ भँवरे
आनंद परम नभ छाया है
बस्ती बस्ती गिरिधारी है
छवि कान्हा की अति प्यारी है
सब नाच रहे हरी भजन संग
उर में गोविन्द समाया है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ अप्रैल ०६ को लिखी
२४ जनवरी २०१० को लोकार्पित
साँसों में श्याम समाया है
सखी प्रेम मगन कलियाँ भँवरे
आनंद परम नभ छाया है
बस्ती बस्ती गिरिधारी है
छवि कान्हा की अति प्यारी है
सब नाच रहे हरी भजन संग
उर में गोविन्द समाया है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ अप्रैल ०६ को लिखी
२४ जनवरी २०१० को लोकार्पित
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