Sunday, January 24, 2010

उर में गोविन्द


चल आज बसंती पवन चली
साँसों में श्याम समाया है

सखी प्रेम मगन कलियाँ भँवरे
आनंद परम नभ छाया है

बस्ती बस्ती गिरिधारी है
छवि कान्हा की अति प्यारी है

सब नाच रहे हरी भजन संग
उर में गोविन्द समाया है


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ अप्रैल ०६ को लिखी
२४ जनवरी २०१० को लोकार्पित

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