Saturday, January 23, 2010

परम प्रेम की रीत

सुन्दरतम गिरिधारी हँस हँस
बरसाए आनंद उजास

मोहनमय मन मगन मनोहर
करे सांस में नित्य निवास



परम प्रेम की रीत निराली
एक लगे, धरती आकाश


श्याम शब्द है और मौन भी
नित्य निरंतर मेरे पास

अशोक व्यास
३ मार्च २००६ को लिखित
२३ जनवरी २०१० को लोकार्पित

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