Tuesday, January 5, 2010

नित कान्हा करे सहाय


कृष्ण नाम पालन करे
हरे ताप और पाप
एक काज कर मन सदा
श्याम नाम का जाप


अमृत सी मुस्कान से
कितना प्रेम लुटाय
डर, दुविधा व्यापे नहीं
नित कान्हा करे सहाय


विनती है कर जोरी के
ओ मेरे घनश्याम
सांस लहर तिरता रहूँ
लिए तुम्हारा नाम


अशोक व्यास

(२० फरवरी २००५ को लिखी पंक्तियाँ
५ जन २०१० को लोकार्पित )

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