लिखना है आभार तुम्हारा ओ कान्हा
मिले निरंतर प्यार तुम्हारा ओ कान्हा
हर क्षण रसमय, हर कण चिन्मय
साँसों में उपकार तुम्हारा, ओ कान्हा
धूप छाँव का खेल रचाने वाले तुम
हर अनुभव उपकार तुम्हारा, ओ कान्हा
करुणामय हो इसीलिए कह लेता हूँ
दृष्टि हो नित द्वार तुम्हारा, ओ कान्हा
ऊँच-नीच सब छोड़ तुम्हारे चरणों में
हर कण पाया सार तुम्हारा, ओ कान्हा
मेरेपन का भान भुलाना है प्यारे
हो मेरा संसार तुम्हारा, ओ कान्हा
अशोक व्यास,
(३ सितम्बर ९७ को दिल्ली में लिखी पंक्तियाँ
३ जनवरी २०१० को अमेरिका से लोकार्पित )
मिले निरंतर प्यार तुम्हारा ओ कान्हा
हर क्षण रसमय, हर कण चिन्मय
साँसों में उपकार तुम्हारा, ओ कान्हा
धूप छाँव का खेल रचाने वाले तुम
हर अनुभव उपकार तुम्हारा, ओ कान्हा
करुणामय हो इसीलिए कह लेता हूँ
दृष्टि हो नित द्वार तुम्हारा, ओ कान्हा
ऊँच-नीच सब छोड़ तुम्हारे चरणों में
हर कण पाया सार तुम्हारा, ओ कान्हा
मेरेपन का भान भुलाना है प्यारे
हो मेरा संसार तुम्हारा, ओ कान्हा
अशोक व्यास,
(३ सितम्बर ९७ को दिल्ली में लिखी पंक्तियाँ
३ जनवरी २०१० को अमेरिका से लोकार्पित )
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