Friday, January 29, 2010

सुमिरन रस


छल छल छलके प्रसन्नता का भाव मनोहर
मन में उमड़े कृष्ण प्रेम का कृपामयी स्वर

चलो गोपियों संग श्याम लीला रस चख लें
खूब लुटाएं, माखनमय सुमिरन रस भर भर



अनुभव रचने वाले कान्हा
सुमिरन रस, उपहार ना छीनो

प्रेम तुम्हारा, शरण तुम्हारी
है यह जीवन सार, ना छीनो

बीच धार मन, तुम ही सहारा
कृपामयी पतवार, ना छीनो

मिले जहाँ से सत्य प्रेरणा
कान्हा, वह आधार, ना छीनो


सुमिरन रस, उपहार ना छीनो


अशोक व्यास
मार्च १४ और मार्च १५, ०६ को लिखी
२९ जनवरी १० को लोकार्पित

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