Thursday, January 21, 2010

प्रणय सुधा बरसी कैसी


मन वृन्दावन
तन गोवर्धन
मैं दौड़ पड़ी बंशी धुन सुन
पग शूल चुभे
ना ध्यान पडा
सांसो में जैसे बिजली सी
तडपी बिन जल की मछली सी

जब श्याम दरस बिन सांस चले
तो रोम रोम में अगन जले

केशव अमृत घट छलकाए
नैनों से ही कुछ कर जाए

हो धन्य फिरूं हिरनी जैसी
ये प्रणय सुधा बरसी कैसी

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ अप्रैल ०६ को लिखी
२१ जन १० को लोकार्पित

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