मन वृन्दावन
तन गोवर्धन
मैं दौड़ पड़ी बंशी धुन सुन
पग शूल चुभे
ना ध्यान पडा
सांसो में जैसे बिजली सी
तडपी बिन जल की मछली सी
जब श्याम दरस बिन सांस चले
तो रोम रोम में अगन जले
केशव अमृत घट छलकाए
नैनों से ही कुछ कर जाए
हो धन्य फिरूं हिरनी जैसी
ये प्रणय सुधा बरसी कैसी
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ अप्रैल ०६ को लिखी
२१ जन १० को लोकार्पित
तन गोवर्धन
मैं दौड़ पड़ी बंशी धुन सुन
पग शूल चुभे
ना ध्यान पडा
सांसो में जैसे बिजली सी
तडपी बिन जल की मछली सी
जब श्याम दरस बिन सांस चले
तो रोम रोम में अगन जले
केशव अमृत घट छलकाए
नैनों से ही कुछ कर जाए
हो धन्य फिरूं हिरनी जैसी
ये प्रणय सुधा बरसी कैसी
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ अप्रैल ०६ को लिखी
२१ जन १० को लोकार्पित
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