Monday, June 21, 2010

एक विस्तृत मौन


कृष्ण नहीं दिखाई दिए
दूर दूर तक
,कोई भी ना दिखता था

पवन थी
आकाश था
पर्वत थे
और एक विस्तृत मौन
जिसके साथ
एक मेक होकर
जिस क्षण
लगा था मुझे
'नहीं हूँ मैं भी कहीं'
तब सहसा एक झलक दिखी थी
मुस्कुराते हुए कृष्ण की


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ मई २००९ को लिखी
२१ जून २०१० को लोकार्पित

4 comments:

vandana gupta said...

वाह ………………बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति…………जहाँ मैं मिटा वहीं तो पहुँचना है तभी तो दर्शन होते हैं।

Amitraghat said...

"गहन भाव लिये.."

रंजना said...

वाह....
यह है प्रेम और भक्ति का उत्कृष्ट रसमय स्वरुप...

Unknown said...

maun aur dyaan mein hi eshwar ki jhalak dikh sakti hai......bahut sundar abhiwyakti....