कृष्ण नहीं दिखाई दिए
दूर दूर तक
,कोई भी ना दिखता था
पवन थी
आकाश था
पर्वत थे
और एक विस्तृत मौन
जिसके साथ
एक मेक होकर
जिस क्षण
लगा था मुझे
'नहीं हूँ मैं भी कहीं'
तब सहसा एक झलक दिखी थी
मुस्कुराते हुए कृष्ण की
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ मई २००९ को लिखी
२१ जून २०१० को लोकार्पित
4 comments:
वाह ………………बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति…………जहाँ मैं मिटा वहीं तो पहुँचना है तभी तो दर्शन होते हैं।
"गहन भाव लिये.."
वाह....
यह है प्रेम और भक्ति का उत्कृष्ट रसमय स्वरुप...
maun aur dyaan mein hi eshwar ki jhalak dikh sakti hai......bahut sundar abhiwyakti....
Post a Comment