Saturday, March 26, 2011

नित कृष्ण कृष्ण ही गाऊँ


कृपा आपकी
बरसे क्षण क्षण
मूरख जान ना पाऊँ

एक साध है
एक बात
नित कृष्ण कृष्ण ही गाऊँ

ओ कान्हा
बंशी वाले
मैं नित्य तुझ ही को ध्याऊँ
सुमिरन तेरा 
तेरी आस ही
सांस सांस अपनाऊँ

अशोक व्यास
३० अप्रैल १९९७ की रचना
२६ मार्च २०११ को लोकार्पित         

2 comments:

प्रदीप नील वसिष्ठ said...

प्रार्थना की शक्ति और यही तो है भक्ति.
सुंदर अशोक जी ,बहुत सुंदर
प्रदीप नील
मेरे भी कुछ भजन हैं उसी मुरली वाले पर लेकिन अलग .लिंक दे रहा हूँ
www.neelsahib.blogspot.com

Ashok Vyas said...

dhanywaad Neeljee
Jai Shri Krishna