Thursday, January 13, 2011

मन चंचल, कान्हा भी चंचल

 
मैं कान्हा की
कान्हा मेरे
एक कृष्ण के
कितने डेरे
कृपा करे है
जब सांवरिया 
आये मिलने
तोड़े घेरे

सांझ सवेरे
कृष्ण नाम लूं
पल पल
अपने पी को थाम लूं
सारी दुनिया छोड़ हटूं मैं
अब तो केवल श्याम नाम लूं

आँखों में कितना सारा छल
कैसे दिखे मोहना निश्छल
मेरे मन से खूब पटे है
मन चंचल, कान्हा भी चंचल
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
२१ मार्च १९९८ को लिखी 
१३ जनवरी २०११ को लोकार्पित 

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