लिख अनुरागी मन के किस्से
लिख पुलकित मन
श्याम का गौरव
चरण कमल
फैलाव निरंतर
अपनापन
केशव मुख सुन्दर
एक हुए
जिस क्षण
उसका धन
लिख मोहन घनश्याम निरंतर
मांग मधुर मुरली वाले से
अर्पण का यह सार निरंतर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ मार्च १९९८ को लिखी
१४ जनवरी २०११ को लोकार्पित
No comments:
Post a Comment