Friday, January 14, 2011

अर्पण का यह सार निरंतर


लिख अनुरागी मन के किस्से
लिख पुलकित मन
श्याम का गौरव
चरण कमल
फैलाव निरंतर
अपनापन
केशव मुख सुन्दर
एक हुए 
जिस क्षण
उसका धन

लिख मोहन घनश्याम निरंतर
मांग मधुर मुरली वाले से
अर्पण का यह सार निरंतर

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ मार्च १९९८ को लिखी
१४ जनवरी २०११ को लोकार्पित

No comments: