Wednesday, January 19, 2011

आनंद गुंजन होय


श्याम प्रेम नाटक करूँ
सांस श्याम चौखट धरूं
कृपा किरण जब छू गई
नित्य श्याम दरसन करूँ


प्रेम मगन होने चली
सुमिरन की खिलती काली
सारी दुनियां छोड़ कर
श्याम नाम खोने चली

कृष्ण दिलाये शांति
फिर तनाव धर देय
ऐसो कर वैसो करे
तब अपनों कर ले
 
४ 
कान्हाजी के रास का 
कैसे वर्णन होय
रमे सभी आलोक में
आनंद गुंजन होय


भाव नहीं, तन्मय नहीं
फिरता फिरूं फ़कीर
चलते चलते जय के
बैठूं जमुना तीर


प्रेम तिहारा साथ ले
पाऊँ चैन अथाह
तुझको गारी दे रहा
ले मिलने की चाह


रे केशव, क्या है सही
तुम ही जानो नाथ
चलता जाऊं हर गली
मैं तुमको माने साथ

जय श्री कृष्ण

९ मई १९९८ को लिखी
१९ जनवरी २०११ को लोकार्पित

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