Tuesday, January 18, 2011

वो कैसे मिलते अगर 'मैं' रह जाता




वह फिर फुस्स हो गया
बोला
ठाकुरजी मुझसे नहीं बनता
आप ही करो
हाथ पकड़ कर नदी पार करा दो
बाद में मैं देख लूँगा

ठाकुरजी मुस्कुराये
ऐसा काम मैं नहीं करता हूँ
मैं हूँ तो मैं ही मैं हूँ
पहले भी और बाद मैं भी
मंजूर हो तो हाथ मिलाओ

हाथ कौन मिलाता?
वो कैसे मिलते अगर 'मैं' रह जाता 
 
 
अशोक व्यास 
४ मई १९९८ को लिखी 
 
१८ जनवरी २०११ को लोकार्पित 

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