Monday, January 17, 2011

समूचा रस सागर

 
अहा!
बरसता है
अमृत सा
वह केशव
माधव
मुरलीधर
अपने कर से
बहा रहा
आशीष
कृपा 
करूणा
और
प्रेम अजब ये कैसा

एक बूँद भी तृप्त करे है
मगर
समूचा रस सागर भी यह
रखता है प्यासा कैसे?

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ अप्रैल १९९८ को लिखी
१७ जनवरी २०११ को lokarpit

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