"मैं" कैसा रच कर दिया
ओ प्यारे गोपाल
बदल रंग, छल कर रही
क्षण क्षण इसकी ताल
नहीं सुने है श्यामघन
तेरी मुरली तान
अपने हाथों कर रहा
संकट में निज प्राण
रोना है निस्सार ये
जान गया यदुवीर
फिर भी बढ़ता जाए है
ये आंसू का चीर
मेरा मैं है द्रौपदी
धरे इन्द्रियां दांव
क्या कान्हा आये स्वयं
ले आंसू की छाँव
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ जून १९९८ को लिखी
२९ जंव २०११ को लोकार्पित
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