प्रेम पताका
लिए हुए
मैं बीच डगर के
आन खड़ा था,
मैं कान्हा का भक्त हो गया
इसका मुझको मान बड़ा था
आते जाते
लोग देख कर
झंडा मैंने फहराया
सबकी आँखों से
लगता था
कोई देख नहीं पाया
बड़ी देर में
जान सका
छल करती थी मुझसे माया
मैं छोड़ पताका
दूर कहीं
बड़ 'मैं' का 'डंडा' संग लाया
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० मार्च १९९८ को लिखी
५ जनवरी २०११ को लोकार्पण
५ जनवरी २०११ को लोकार्पित परिमार्जन के साथ
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