बरसों बाद भी
नहीं मानता मन
कि
कविता में नहीं होता
श्याम का आगमन
विश्वास का माखन लेकर
शब्द की हांडी में
आत्मीय छींके पर
लटका कर
सरल गोपी की तरह
करता हूँ प्रतीक्षा
इस बार
शायद इस बार
वो ऐसे फोड़ेगा
ये अहंकार की मटकिया
कि
सारा जीवन
माखन-माखन हो जाएगा
कविता में
ये कैसी महीन आभा सी
सतत श्रद्धा है
श्याम आएगा
बंशी सुनाएगा
शब्द में से
उसका होना
दूर दूर तक
आलोक फैलाएगा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ जनवरी 2011
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